लेखनी कविता विकास -11-Feb-2022

✍🏻विकास (तरक्की)✍🏻

✍🏻 अपने ही हाथों ✍🏻

अपने ही हाथों से कर दिया धरती का दमन,
तरक्की के चक्कर में दानव बन बैठा मानव-मन,
अब धरती धधक रही है उनके ही बिछाएं बारूद से,
अब मानव बन नादान ढक रहा है उस  पर मखमली चादर से,
बरस रहा है बारूद बन कर अंगार धरा पर हो रहा अब परेशान,
सूखा-सुना पड़ा है खेत-खलिहान परेशान है सब किसान,  
मजदूरों की भी बड़ी है मजबूरी यहां पर,
कोरोना ने फैलाया है अपना कहर धरा पर,
क्योंकि.........?
मानव बन मान बैठा है अब अपने-आपको को भगवान,
तभी तो हो गई है कुदरत भी क्रोधित इंसान के रहन-सहन,
ऐसी तरक्की भी क्या कर ली इंसान-इंसान से दूरी ही दवा बन गई है?
नंगा नाच कर रही भूख मजदूरों के घर-आंगन,
मजदूरों को भूख से या फिर कोरोना की महामारी,
इनको तो मरना हर हाल में ही है,
रोजी-रोटी के चक्कर में नापी है सड़के सारे हिंदुस्तान की है,
आम जनता की भीड़ कोरोना को देती है आमंत्रण,
नेताओं की रैलीयों में देते है कोरोना को मोड़,
कैसी ये मंत्रीगण की लीला है हर मोड़ पर,
चारों तरफ देखो बस षडयंत्र ही षडयंत्र आता नजर,
असमंज-अचम्भित जनता यह सब सह रही है,
नेता हवेली में अपने आराम फरमा रहे है,
जनता सड़कों पर डर-डर के कोरोना की लहरों का 
और 
भूख का कर रही संघर्ष यहां !!
    ✍🏻 वैष्णव चेतन"चिंगारी" ✍🏻
          गामड़ी नारायण
              बाँसवाड़ा
              राजस्थान
स्वरचित-मौलिक मेरी रचना

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10 Comments

Swati chourasia

11-Feb-2022 04:37 PM

Very beautiful 👌

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🙏ह्र्दयतल आभार आपका आदरणीया

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Aliya khan

11-Feb-2022 12:33 PM

जी अब दोनो आ गयी है सर आपकी रचना कोई भी जानकारी आपको चाहिए हो तो व्हाट्सएप नो पर mgs करे

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ह्र्दयतल आभार आपका 🙏🙏

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Aliya khan

11-Feb-2022 12:07 PM

Hlo sr jaha pr hm rachna ke prkar chunte h wahi pr niche वार्षिक लेख कविता प्रतियोगिता की भी केटेगरी है आप उस मे पोस्ट कर इस पोस्ट को आप एडिट पर जाकर फिर से पोस्ट कर तो ये लेख ईयर मे दिखने लगेगी नही समझ आये तो वेबसाइट पर व्हाट्सएप no भी है आप उस पर mgs करे आपको पूरी जानकारी दी जाएगी

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